हल्द्वानी अतिक्रमण मामला: हल्द्वानी में नहीं चलाए जाएंगे 4000 घरों पर बुलडोजर, सुप्रीम कोर्ट का आदेश।
सार
हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाक़े के गफ़ूर बस्ती और उसके अगल बगल की तकरीबन 29 एकड़ ज़मीन पर करीब 4,000 से अधिक घरों को गिराने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा फिलहाल रोक लगा दिया गया है।
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विस्तार
उत्तराखंड के हल्द्वानी में आज अनेकों लोगों के दिल की धड़कनें बढ़ गई थी, क्योंकि आज उनके घरौंदे को लेकर बड़ा दिन था। अब जाकर इन लोगों ने राहत की सांस ली है। रेलवे की ज़मीन को खाली कराने के ख़िलाफ़ दाख़िल याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि हम रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं। वहां और अधिक कब्जे पर रोक लगे. फिलहाल हम हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा रहे हैं. मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगा।
महत्वपूर्ण जानकारी
उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की ज़मीन पर अवैध कब्ज़े को हटाने को लेकर उत्तराखंड हाइकोर्ट ने आदेश दिया था और इसके लिए प्रशासन को एक हफ़्ते की मोहलत दी गई थी। प्रशासन ने लोगों से 9 जनवरी तक अपना सामान ले जाने को कहा था। आदेश में कहा गया था कि इसके बाद मकानों पर बुल्डोजर चला दिया जाएगा। उत्तराखंड हाईकोर्ट के अतिक्रमण हटाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ कुल 6 याचिकाएं दाख़िल हुई हैं। इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।
याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने रेलवे अधिकारियों द्वारा सात अप्रैल, 2021 की कथित सीमांकन रिपोर्ट पर विचार नहीं किया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि उनके पास जमीन के वैध दस्तावेज हैं। हल्दवानी के बनभूलपुरा इलाक़े में गफ़ूर बस्ती और उसके आसपास की क़रीब 29 एकड़ ज़मीन पर 4000 से ज़्यादा मकानों को गिराया जाना है, जिससे क़रीब 50 हज़ार लोगों के बेघर होने का ख़तरा मंडरा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इस इलाक़े में चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी की टंकी, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं। इसके अलावा दशकों पहले बनी दुकानें भी हैं। उत्तराखंड हाइकोर्ट के आदेश के बाद से लोगों ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। लोग सवाल उठा रहे हैं कि अब क्यों रेलवे प्रशासन जागा है। इस ज़मीन पर दशकों से घर, स्कूल और अस्पताल बनने के बाद रेलवे की नींद खुली है।
इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो सुनवाई के दौरान रेलवे से पूछा गया कि क्या पुनर्वास की कोई योजना नहीं है? आप केवल 7 दिनों का समय दे रहे हैं और कह रहे हैं खाली करो, ये मानवीय मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से भी पूछा कि लोग 50 सालों से रह रहे हैं, उनके पुनर्वास के लिए कोई योजना होनी चाहिए।हमें कोई प्रैक्टिकल समाधान निकालना होगा। समाधान का ये तरीक़ा नहीं है।
इस मामले पर राजनीति भी जारी है। हालांकि, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि कोर्ट के आदेश के अनुसार ही प्रशासन कोई कदम उठाएगा। ये न्यायालय और रेलवे के बीच की बात है, सरकार इसमें पार्टी नहीं है।

पूरा मामला
ये कहानी हल्द्वानी के बनभूलपुरा के 2.2 किमी इलाके में फैले गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर की, जहां रहने वालों को रेलवे ने नोटिस जारी किया था कि 82.900 किमी से 80.170 रेलवे किमी के बीच अवैध अतिक्रमणकारी हट जाएं, वरना अतिक्रमण हटाया जाएगा और कीमत उसकी अतिक्रमणकारियों से ही वसूली जाएगी।
रेलवे के मुताबिक, 2013 में सबसे पहले गौला नदी में अवैध रेत खनन को लेकर मामला कोर्ट में पहुंचा था। 10 साल पहले उस केस में पाया गया कि रेलवे के किनारे रहने वाले लोग ही अवैध रेत खनन में शामिल हैं। तब दावा है कि हाईकोर्ट ने रेलवे को पार्टी बनाकर इलाका खाली कराने के लिए कहा. तब स्थानीय निवासियों ने विरोध में सुप्रीम कोर्ट जाकर याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय निवासियों की भी दलीलें सुनने का निर्देश दिया. रेलवे दावा करती है कि सभी पक्षों की फिर दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर 2022 को अतिक्रमणकारियों को हटाने का निर्देश दिया। रेलवे दावा करता है कि उसके पास पुराने नक्शे हैं, 1959 का नोटिफिकेशन है, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड है और 2017 की सर्वे रिपोर्ट है।
लेकिन अपने हाथ में तमाम दस्तावेज, पुराने कागज और दलीलों के साथ लोग सवाल उठाते हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि रेलवे की जमीन पर हमने अतिक्रमण नहीं किया, रेलवे हमारे पीछे पड़ी है। फिलहाल 4400 परिवारों और 50 हजार लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए 7 फरवरी तक हाई कोर्ट के बुलडोजर चलाने वाले आदेश पर रोक लगा दी है।