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Ram Setu : राम सेतु से जुड़े 10 रोचक तथ्य, जानें कुछ चौंकाने वाली बातें

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Ram Setu : राम सेतु से जुड़े 10 रोचक तथ्य, जानें कुछ चौंकाने वाली बातें

Content

  • रामसेतु के 10 रोचक तथ्य
  • 1993 में नासा द्वारा रामसेतु का चित्र जारी
  • अमेरिकी पुरात्वविदों ने सेतु बनाने की हिंदू पौराणिक कथा को सच बताया
  • श्रीलंका के मुसलमानों रामसेतु को आदम पुल मानते थे 
  • चक्रवात के कारण टूट गया पुल
  • ज्वालामुखी से उत्पन्न पत्थरों से बनाया गया सेतु
  • श्रीराम ने सेतु के नाम ‘नल सेतु’ रखा
  • पुल का निर्माण सूत के सीध में हुआ
  • अनेकों पुराणों में है रामसेतु का वर्णन
  • तीन दिन की खोजबीन के बाद मिला समुद्र बनाने का स्थान
  • धनुषकोडी नाम होने की वजह
  • रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं
  • संदर्भ ग्रंथ 

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Ram Setu: वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस के मुताबिक प्रभु श्री राम द्वारा श्रीलंका जाने के लिए समुद्र के ऊपर एक ब्रिज (सेतु) का निर्माण किया गया था। उस सेतु अर्थात ब्रिज के अवशेष आज भी मौजूद हैं, किंतु ‘सेतुसमुद्रम परियोजना’ के तहत ये सेतु को बहुत अधिक क्षतिग्रस्त हो चुका है।

तो आइए जानते हैं भगवान श्रीराम द्वारा निर्मित रामसेतु के 10 रोचक तथ्य।

1. 1993 में नासा द्वारा रामसेतु का चित्र जारी

  • भारत के दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग के उपग्रह से खींचे गए चित्रों को अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (नासा) ने जब 1993 में दुनियाभर में जारी किया।
  • जिससे भारत में इसे लेकर राजनीतिक वाद-विवाद का जन्म हो गया था।
  • इस पुल जैसे भू-भाग को राम का पुल या रामसेतु कहा जाने लगा।
  • राम सेतु का चित्र नासा ने 14 दिसम्बर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था।
  • इसके 22 साल बाद आई.एस.एस 1 ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि-भाग का पता लगाया और उसका चित्र लिया।
  • इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्र की पुष्टि हुई।

2. अमेरिकी पुरात्वविदों ने सेतु बनाने की हिंदू पौराणिक कथा को सच बताया

  • दिसंबर 1917 में साइंस चैनल पर एक अमेरिकी टीवी शो “एनशिएंट लैंड ब्रिज” में अमेरिकी पुरात्वविदों ने वैज्ञानिक जांच के आधार पर यह कहा था कि भगवान राम के श्रीलंका तक सेतु बनाने की हिंदू पौराणिक कथा सच हो सकती है।
  • भारत और श्रीलंका के बीच 50 किलोमीटर लंबी एक रेखा चट्टानों से बनी है।
  • ये चट्टानें सात हजार साल पुरानी हैं जबकि जिस बालू पर ये चट्टानें टिकी हैं, वह चार हजार साल पुराना है।
  • नासा की सेटेलाइट तस्वीरों और अन्य प्रमाणों के साथ विशेषज्ञ कहते हैं कि चट्टानों और बालू की उम्र में यह विसंगति बताती है कि इस पुल को इंसानों ने बनाया होगा।

3. श्रीलंका के मुसलमानों रामसेतु को आदम पुल मानते थे

  • इस पुल जैसे भू-भाग को राम का पुल या राम सेतु कहा जाने लगा।
  • सबसे पहले श्रीलंका के मुसलमानों ने इसे आदम पुल कहना शुरू किया था।
  • फिर ईसाई या पश्चिमी लोग इसे एडम ब्रिज कहने लगे।
  • वे मानते हैं कि आदम इस पुल से होकर गुजरे थे।

4. चक्रवात के कारण टूट गया पुल

  • राम सेतु पर कई शोध हुए हैं कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था।
  • लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया।
  • 1480 ईस्वी सन् में यह चक्रवात के कारण टूट गया।
  • साथ ही,  समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण यह डूब गया।

5. ज्वालामुखी से उत्पन्न पत्थरों से बनाया गया सेतु

  • वाल्मीकि रामायण कहता है कि जब श्रीराम ने सीता को लंकापति रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की।
  • उस वक्त उन्होंने विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील से एक सेतु बनवाया था।
  • जिसे बनाने में वानर सेना से सहायता की थी।
  • इस सेतु में पानी में तैरने वाले पत्थरों का उपयोग किया गया था।
  • जो कि किसी अन्य जगह से लाए गए थे।
  • कहते हैं कि ज्वालामुखी से उत्पन्न पत्‍थर पानी में नहीं डूबते हैं।
  • संभवत: इन्हीं पत्‍थरों का उपयोग किया गया होगा।

Ram Setu : राम सेतु से जुड़े 10 रोचक तथ्य, जानें कुछ चौंकाने वाली बातें

6. श्रीराम ने सेतु के नाम ‘नल सेतु’ रखा

  • भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को ‘धनुषकोटि’ कहते हैं।
  • राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक ब्रिज बनाया था।
  • इसका उल्लेख ‘वाल्मिकी रामायण’ में मिलता है।
  • श्रीराम ने इसे सतु का नाम नल सेतु रखा था।
  • वाल्मीक रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया।
  • जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी।
  • रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु’ की संज्ञा दी गई है।
  • नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।-(वाल्मीक रामायण-6/22/76)।
  • गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु’ रखा।
  • इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था।
  • महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है।

7. पुल का निर्माण सूत के सीध में हुआ

  • वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था।
  • कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आए थे।
  • कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे।
  • अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/62)

8. अनेकों पुराणों में है रामसेतु का वर्णन

  • वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने ‘रघुवंश’ के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है।
  • इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है।
  • यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया था।
  • अंन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है।
  • स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।

9. तीन दिन की खोजबीन के बाद मिला समुद्र बनाने का स्थान

  • वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो।
  • उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया।
  • धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है।
  • ये धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
  • धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।

10. धनुषकोडी नाम होने की वजह

  • इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था।
  • उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है।
  • इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है।
  • धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है।
  • जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष 5075 ईपू के आसपास की होगी (1/4/1 -2)। श्रुति स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपास इसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं।

रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं

  •   कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू)
  •  बौ‍द्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू)
  •  कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्‍टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू)
  •  नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी)
  •  नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी)
  •  श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना ‘जानकी हरण’ (सातवीं शताब्दी)
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संदर्भ ग्रंथ

  • वाल्मीकि रामायण
  • वैदिक युग एवं रामायण काल की ऐतिहासिकता (सरोज बाला, अशोक भटनागर, कुलभूषण मिश्र)

 

Disclaimer: इस लेख में दी गई सभी जानकारी सोशल मीडिया से एकत्रित की गई है, यदि इसमें कोई भी गलती होगी तो इसकी जिम्मेदारी सिवान एक्सप्रेस न्यूज़ की नहीं होगी।

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