स्वस्तिक क्या होता है, किसी भी शुभ कार्य से पहले इसे क्यों बनाया जाता है? जानिए इसका कारण और रहस्य
प्राचीन समय से ही स्वस्तिक को सनातन संस्कृति में मंगल और शुभता का प्रतीक माना गया है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य ही बनाया जाता है। साथ ही, इसकी पूजा भी की जाती है। स्वस्तिक शब्द का निर्माण सु+अस+क शब्दों से मिलकर बनाया जाता है। जिसमे, ‘सु’ का अर्थ है अच्छा या शुभ, ‘अस’ का अर्थ है ‘शक्ति’ या ‘अस्तित्व’ और ‘अ’ का अर्थ है ‘कर्ता’ इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द में समस्त विश्व के कल्याण और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना जुड़ी हुई है।
आज के इस लेख में हम जानेंगे कि स्वस्तिक क्या होता है और इसके प्रयोग से क्या लाभ होता है। तो चलिए आज का ये लेख हम शुरू करते हैं:-
- स्वस्तिक का क्या अर्थ है?
- स्वस्तिक में बनी चार भुजाओं का अर्थ
- स्वस्तिक के बीच में बने बिंदु का महत्व
- विभिन्न देशों में स्वस्तिक का नाम
- स्वस्तिक चिह्न बनाने की वजह
- स्वस्तिक का चिह्न कहां बनाए
- अशुद्ध स्थानों पर स्वस्तिक बनाना वर्जित
- ब्रह्माण्ड का प्रतीक चिन्ह
स्वस्तिक का क्या अर्थ है?
स्वस्तिक का अर्थ होता है – कल्याण और मंगल करने वाला। स्वस्तिक एक विशेष प्रकार की एक आकृति है, जो कौशल और कल्याण का प्रतीक है। स्वस्तिक में दो सीधी रेखाएं होती है जो बिना काटे बनाई जाती है, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। बाद भी ये रेखाएं उनके सिर पर थोड़ा आगे मुड़ जाती हैं।
स्वस्तिक दो प्रकार की हो सकती हैं- प्रथम स्वस्तिक जिसमें रेखाएं आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दाईं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘दक्षिणावर्त स्वस्तिक’ कहते हैं। दूसरी आकृति पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बाईं ओर मुड़ती है इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ कहते हैं।
स्वस्तिक में बनी चार भुजाओं का अर्थ
यह चिन्ह शुभता का प्रतीक है, जो हमारी प्रगति का संकेत देता है। ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण की उपमा दी गई है। सिद्धांतसार नामक ग्रन्थ में स्वस्तिक को जगत् जगत का प्रतीक माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में वर्णन किया गया है। इसके अलावा, अन्य ग्रंथों में स्वस्तिक को चार वर्ण, चार आश्रम और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, सामाजिक व्यवस्था और व्यक्तिगत मान्यताओं को जीवित रखने वाले लक्षण बताया गया हैं।
स्वस्तिक के बीच में बने बिंदु का महत्व
स्वस्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद बीच में बने बिंदु को भी अपनी एक अलग मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्वस्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना जाता है, तो इसके मध्य में बने बिंदु को भगवान विष्णु की नाभि मानते है, जिससे भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। स्वस्तिक के चिन्ह में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां भी सम्मिलित हैं। इसके अलावा स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन भी माना गया है। वहीं, स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति ‘ग’ बीज मंत्र का स्थान है।
विभिन्न देशों में स्वस्तिक का नाम
स्वस्तिक के कुछ अन्य नाम भी हैं जिसका प्रयोग विभिन्न देशों में किया जाता है। जैसे:-
- चीन – वान
- इंग्लैंड – फ्लाईफ़ोटो
- जर्मनी — हेकेनक्रेज़ू
- ग्रीस – टेट्राकेलियन और गैमाडियोन
- जापान – मंजियो
- भारत – स्वस्तिक
Bihar Police Vacancy 2023: बिहार पुलिस में कुल 21391 पदों के लिए निकली बंपर वेकेंसी
स्वस्तिक चिह्न बनाने की वजह
- स्वस्तिक चिन्ह बनाने से धनवृद्धि, गृहशान्ति, रोग निवारण, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति मिलती है।
- किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाया जाता है।
- ज्योतिष शास्त्र में इस शुभ चिह्न को प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सफलता व उन्नति का प्रतीक माना जाता है।
- इस चिन्ह को बनाने से अनेक प्रकार के वास्तु दोष समाप्त होते हैं।
- स्वस्तिक 27 नक्षत्रों को सन्तुलित कर सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करता है।
- इसका भरपूर इस्तेमाल अमंगल व बाधाओं से मुक्ति दिलाने वाला होता है।
स्वस्तिक का चिह्न कहां बनाए
- स्वस्तिक को प्रत्येक मंगल और शुभ कार्य में बनाया जाता है।
- इसका प्रयोग रसोईघर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल और कार्यालय में किया जाता है।
- इसके प्रयोग से तनाव, रोग, क्लेश, निर्धनता एवं शत्रुता से मुक्ति मिलती है।
- स्वस्तिक को धन की देवी लक्ष्मी का प्रतीक भी माना गया है।
- स्वस्तिक के प्रयोग से सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद घर परिवार के लोगो पर बना रहता है।

अशुद्ध स्थानों पर स्वस्तिक बनाना वर्जित
- स्वास्तिक जैसे पवित्र चिन्ह का प्रयोग शुद्ध, पवित्र एवं सही स्थान पर ही करना चाहिए।
- शौचालय एवं गन्दे स्थानों पर इसका प्रयोग करना वर्जित है।
- ऐसा करने वाले की बुद्धि एवं विवेक की क्षति होती है।
- साथ ही, दरिद्रता, तनाव, रोग एवं क्लेश में भी वृद्धि होती है।
ब्रह्माण्ड का प्रतीक चिन्ह
- स्वस्तिक का ये मंगलकारी और शुभ चिह्न ब्रह्माण्ड का प्रतीक चिन्ह माना गया है।
- इसके मघ्य भाग को विष्णु जी की नाभि होती है।
- चारों रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में चित्रित करता है।
- देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामंडल का चिह्न स्वस्तिक के आकार का होने के वजह से इसे वेदों और शास्त्रों में एक शुभ चिन्ह माना जाता है।
- तर्क द्वारा भी इसे सिद्ध किया जा सकता है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं और ज्ञान पर आधारित हैं। इन पर अमल करने से पहले इससे संबधित विशेषज्ञो और जानकारों से संपर्क अवश्य करें